ब्रेस्ट कैंसर : जल्द पहचान से बचती है जान

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ब्रेस्ट कैंसर : जल्द पहचान से बचती है जान

कैंसर के बारे में बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर लोगों को लगता है कि यह बीमारी हमें नहीं हो सकती। इस चक्कर में वक्त रहते लोग जांच नहीं कराते और यही देरी इस बीमारी को घातक बना देती है।

कैस होता है कैंसर

हमारे शरीर के सभी अंग सेल्स से बने होते हैं। जैसे-जैसे शरीर को जरूरत होती है, ये सेल्स आपस में बंटते रहते हैं और बढ़ते रहते हैं, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि शरीर को इन सेल्स के बढऩे की कोई जरूरत नहीं होती, फिर भी इनका बढऩा जारी रहता है। बिना जरूरत के लगातार होने वाली इस बढ़ोतरी का नतीजा यह होता है कि उस खास अंग में गांठ या ट्यूमर बन जाता है। असामान्य तेजी से बंटकर अपने जैसे बीमार सेल्स का ढेर बना देने वाले एक सेल से ट्यूमर बनने में बरसों, कई बार तो दशकों लग जाते हैं। जब कमसे-कम एक अरब ऐसे सेल्स जमा होते हैं, तभी वह ट्यूमर पहचानने लायक आकार में आता है।

जानें कैसे होता है ब्रेस्ट कैंसर का उपचार

ब्रेस्ट कैंसर का उपचार आमतौर से सर्जरी का प्रकार निर्धारित करने के साथ शुरू होता है। पूरा स्तन निकलवाने (मास्टे€टॉंमी) या केवल कैंसरयुक्त ल्प और इसके आसपास के स्वस्थ टिश्युओं की कुछ मात्रा निकलवाने (ल्पेम€टामी) के दो विकल्प हैं। सर्जरी के बाद आपके डॉ€टर रेडिएशन थेरेपी, कीमोथेरेपी, हार्मोनल थेरेपी या इन थेरेपीज के मिले-जुले उपचार की सिफारिश कर सकते हैं। अतिरिक्त थेरेपी कराने से कैंसर के फिर से होने या फैलने का खतरा घट जाता है।

रेडिएशन थेरेपी

आमतौर से ल्पे€टॉमी के बाद पीछे बचने वाली किसी कैंसरयुक्त कोशिकाओं को नष्ट करने और कैंसर को फिर से होने से रोकने के लिए की जाती है। रेडिएशन थेरेपी के बिना कैंसर फिर से होने की आशंका 25 प्रतिशत बढ़ जाती है। कीमोथेरेपी की जरूरत इस पर निर्भर करती है कि कैंसर कितना फैल चुका है। कुछ मामलों में कीमोथेरेपी की सिफारिश सर्जरी कराने से पहले की जाती है ताकि बड़े ट्यूमर को सिकुड़ाया जा सके जिससे सर्जरी से यह आसानी से निकाला जा सके।

कीमोथेरेपी

कैंसर फिर से होने पर कीमोथेरेपी आमतौर से जरूरी हो जाती है। कीमोथेरेपी के एक प्रकार को हार्मोनल कीमोथेरेपी भी कहते हैं इसकी सिफारिश तब की जाती है जब पैथालॉजी रिपोर्ट में कैंसर के एस्ट्रोजेनरिसेप्टर पॉजिटिव होने का पता चला हो। हार्मोनल कीमोथेरेपी में प्राय: टैमो€सी-फेन (नोल्वाडे€स) दवा का उपयोग किया जाता है। टैमो€सीमफेन, एस्ट्रोजन को स्तन कैंसर वाली ऐसी कोशिकाओं से बाहर रोक देती है जो एस्ट्रोजेन-रिसेप्टर पॉज़िटिव होती हैं जिससे कैंसर के फिर से होने की दर 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है।

हार्मोनल थेरेपी

एरोमाटेज इनहिबिटर्स जैसी दवाएं, हार्मोनल थेरेपी का अन्य प्रकार हैं। इन दवाओं में शामिल हैं- एनास्ट्राज़ोल (आरिमिडे€स), ए€सेमेस्टेन (एरोमासिन) और लेट्रोज़ोल (फीमेरा)। ये ओवरी के अलावा सभी अन्य टिश्युओं में एस्ट्रोजन का बनना रोककर शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा घटा देती हैं। ये दवाएं मेनोपॉज वाली महिलाओं में बहुत लाभदायक हैं €योंकि मेनोपॉज के बाद ओवरी में एस्ट्रोजन का बनना रुक जाता है। डीसीआईएस का उपचार ल्पे€टॉमी से किया जाता है जिसके बाद रेडिएशन थेरेपी या सरल मास्टेए€टॉमी की जाती है जिसमें ल्फि नोड्स को सीमित संख्या में हटा दिया जाता है। डीसीआईएस एक से अधिक लोकेशन पर होने पर या बॉयोप्सी में ट्यूमर कोशिकाओं की स्थिति चिंताजनक प्रतीत होने पर मास्टे€टॉपमी की सिफारिश की जा सकती है। हालांकि मास्टे€टॉमी का कई बार डीसीआईएस के उपचार में अभी तक उपयोग किया जाता है।

देखें कि ये बदलाव तो नहीं हैं

  • ब्रेस्ट या निपल के साइज में कोई असामान्य बदलाव
  • कहीं कोई गांठ (चाहे मूंग की दाल के बराबर ही €यों न हो) जिसमें अ€सर दर्द न रहता हो, ब्रेस्ट कैंसर में शुरुआत में आम तौर पर गांठ में दर्द नहीं होता
  • कहीं भी स्किन में सूजन, लाली, खिंचाव या गढ्ढे पडऩा, संतरे के छिलके की तरह छोटे-छोटे छेद या दाने बनना
  • एक ब्रेस्ट पर खून की नलियां ज्यादा साफ दिखना
  • निपल भीतर को खिंचना या उसमें से दूध के अलावा कोई भी लिक्विड निकलना
  • ब्रेस्ट में कहीं भी लगातार दर्द

(नोट : जरूरी नहीं है कि इनमें से एक या ज्यादा लक्षण होने पर कैंसर हो ही। वैसे भी युवा महिलाओं में 90 पर्सेंट गांठें कैंसर-रहित होती हैं। लेकिन 10 पर्सेंट गांठें चूंकि कैंसर वाली हो सकती हैं, इसलिए डॉ€टर से जरूर जांच कराएं।)

जांच

  • 40 साल की उम्र में एक बार और फिर हर दो साल में मेमोग्राफी करवानी चाहिए ताकि शुरुआती स्टेज में ही ब्रेस्ट कैंसर का पता लग सके।
  • ब्रेस्ट स्क्रीनिंग के लिए एमआरआई और अल्ट्रासोनोग्राफी भी की जाती है। इनसे पता लगता है कि कैंसर कहीं शरीर के दूसरे हिस्सों में तो नहीं फैल रहा।
  • एफएनएसी से भी जांच की जाती है। इसमें किसी ठोस गांठ की जांच सूई से वहां के सेल्स निकालकर की जाती है। ट्यूमर कैसा है, इसकी जांच के लिए यह टेस्ट किया जाता है।