संक्रामक बीमारियाँ रोगाणुओं से होती हैं जो एक व्यक्ति से दूसरे में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्पर्क से फैलती हैं। कुछ और रोग जैसे कि टिटनस रोगाणु-जनित है पर एक व्यक्ति से दूसरे में नहीं फैलते। ऐसे रोगों को भी संक्रामक कहा जाता है। संक्रमण रोग के कारणों में बैक्टीरिया, वायरस, फफूँद और सूक्ष्म परजीवी (जैसे मलेरिया या फाइलेरिया रोग के परजीवी) शामिल होते हैं।
संक्रामक रोगों का भारी बोझ
आधी से ज़्यादा बीमारियाँ और मौतें इन बीमारियों से जुड़ी हुई हैं। इसका एक बड़ा कारण रहन-सहन के खराब हालात जिनमें अशुद्ध पेयजल, मलमूत्र निकास की व्यवस्था न होना, कम पोषण और अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा का अभाव शामिल हैं। छूत/संक्रमण की बीमारियों में बहुत सारी खतरनाक और कम खतरनाक बीमारियाँ शामिल होती है। तपेदिक, कोढ़, काला अज़ार, हाथी पाँव, एड्स, यकृत शोथ (हैपेटाइटिस) मोतीझरा (टॉयफाइड) रैबीज़, बुखार आदि ग्भीर और चिरकारी बीमारियों में आती हैं। दूसरी ओर मलेरिया, वायरस से होने वाला दस्त, निमोनिया, हैजा, डेंगू, मस्तिष्कावरण शोथ (मैनेनजाईटिस) , विभिन्न प्रकर की खॉंसी और जुकाम तीव्र बीमारियों की श्रेणी में आती हैं। इसके अलावा कृमि, पामा (स्कैबीज़) चूका (लाउस) भी बहुत आम हैं। खाने से जुड़ी हुई संक्रामक बीमारयॉं भी काफी होती हैं। आज मौजूद बीमारियों के अलावा नई नई बीमारियाँ भी सामने आ रही हैं।
वर्गीकरण
हमें हर बीमारी के लिए सही प्रति जैविक दवा (एंटीबायोटिक) का इस्तेमाल करना चाहिए। याद रखें कि वायरस से होने वाली ज़्यादातर छूतों का कोई इलाज नहीं हो सकता। यह बहुत ही दुखद है कि वायरस से होने वाली छूतों के लिए भी प्रतिजैविक बैक्टीरिया दवाओं का इस्तेमाल धड़ल्ले से होता है।
संक्रमणों का फैलाव और नियंत्रण
छूत/संक्रमण की बीमारियों का इलाज व्यपजनक और अन्य समूहों की बीमारियों के इलाज से आसान होता है। (जैसे दिल की बीमारियाँ या कैंसर)। इनके लिए तुलनात्मक रूप से आसान और सस्ता इलाज उपलब्ध होता है। इसके अलावा संक्रमण रोगों से बचाव के लिए टीकाकरण ने भी इनका फैलना कम किया है। रहन-सहन सुधार से भी इनमें कमी आती है। संक्रामक रोगों पर चिकित्सीय या बचावकारी तरीकों से नियंत्रण कर पाना आधुनिक चिकित्साशास्त्र की एक बड़ी उपलब्ध हैं और इसी कारण से पूर्व की चिकित्सा प्रणाली आज कहीं पीछे छूट गई है।
संक्रमण की कड़ी खंडित करना
अगर हमें किसी संक्रमण रोग पर नियंत्रण करना है तो हमें आश्रय से लेकर व्यक्ति तक की श्रृंखला में सही कड़ी को चुनना होगा। इसलिए हम आश्रय स्रोत और वाहन इनमें से किसी पर भी काम कर सकते हैं या फिर सीधे पोषद को ही बचा सकते हैं।
आशय, आश्रय, स्रोत, वाहक और वेक्टर
संक्रमण कैसे फैलते हैं ये समझने के लिए हमें कुछ बातें समझनी पड़ेंगी। पहली बात है रोगाणु के आश्रय से सभी जिवाणु हमारे पास आते है।ये आश्रय में रहते हैं, बढ़ते हैं और यहीं से फैलत हैं। इसलिए वो सभी लोग और मवेशी जो तपेदिक से बीमार हों तपेदिक के आश्रय हैं। एक दूषित कुँआ हैजे जैसे रोग का आश्रयस्थल होता है। मलेरिया के मामले में संक्रमण का आश्रय मलेरिया के कुल रोगी होते हैं। मलेरिया का वाहक (संक्रमित) एनोफलीज़ मच्छर होते हैं। यहाँ से ही रोगाणु नए पोषद को संक्रमित करते हैं।
जिन लोगों के माध्यम से ये संक्रमण हमारे गावं या हम तक पहुँचा है वो ही संक्रमण का स्रोत हैं। आश्रय स्थल अक्सर पास ही में स्थित होता है। मलेरिया का परजीवी ऐनोफलीज़ मच्छर के काटने से फैलता है। इसलिए ये मच्छर मलेरिया के लिए संक्रमण कीट का काम करते हैं। मलेरिया के मामले में कोई भी वाहन नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि यह शब्द निर्जीव चीज़ों के लिए इस्तेमाल होता है जैसे हवा, पानी, खाना आदि। संक्रमण का स्रोत वो जगह होती है जहॉं से किसी व्यक्ति को संक्रमण (छूत) लगती है। उदाहरण के लिए अगर एक पिता को तपेदिक है तो वो अपने बच्चे के लिए तपेदिक का स्रोत बन सकता है। संक्रमण का वाहक वो वस्तुहोता है जिसके माध्यम से छूत स्रोत/आश्रय से नए स्पर्कों तक पहुँचती है। उदाहरण के लिए अगर किसी गाय को स्तन का तपेदिक है तो उसका दूध इस छूत का वाहक बन सकता है। बहुत सी बीमारियों जैसे हैजा, हैपेटाइटिस के लिए पानी वाहक का काम कर सता है। वाहक निर्जीव वस्तु होता है। कुछ रोगों का फैलाव भी कीड़ें से होता है। जैसे मलेरिया या डेंगू ऐसे कीटक को उस रोग का संक्रमण कारक (वेक्टर) कह सकते हैं।
उपचार
संक्रामक बीमारी से परेशान इंसान को गर्म खानपान करना चाहिए जैसे गुनगुना पानी पीना, हल्के गर्म दूध का सेवन इत्यादी।
मरीज को संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए भीड़ में जाने से बचना चाहिए और घर में भी अपनी साफ-सफाई का विशेष ध्यान देना चाहिए। घर के सदस्यों से भी आवश्यक दूरी रखनी चाहिए। जैसा कि संक्रमण से फैलने वाले रोगों में
फैलने का डर रहता है तो इसका उचित ध्यान देना चाहिए।
होम्योपैथी में संक्रमण से फैलने वाली बीमारियों की कई दवाएं उपलब्ध हैं और इनका असर बहुत ही कारगर है।
डॉक्टर बताते हैं कि होम्योपैथी में रोग से ज्यादा रोगी का इलाज किया जाता है। होम्योपैथी की चिकित्सा पद्धति लक्षणों के आधार पर उपचार करती है जिससे संक्रामक रोगों में इसका असर बहुत ही बेहतर होता है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
"डॉक्टर के अनुसार संक्रमण से होने वाली बीमारियों से बचने के लिये होमियोपैथी सबसे सुरक्षित व कारगर है। जन्म के पहले पल में भी हम प्रिवेंटिव मेडिसिन्स देते हैं, और वो दवाई इतनी कम मात्रा में होती है की कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं होता है। इसके अलावा जब भी कोई संक्रामक बीमारी फैलती है तो उसका सबसे कारगर इलाज होम्योपैथी में किया जा सकता है। अगर परहेज की बात करें तो जैसा कि यह संक्रामक बीमारियां हैं तो सिर्फ साफ-सफाई का ध्यान रखना और भीड़ में जाने से बचना चाहिए। डॉक्टर बताते हैं कि "मीजल्स संक्रमण से फैलने वाली बीमारी है इसमें हल्के बुखार के साथ पूरे शरीर में चकत्ते निकल आते हैं। होम्योपैथी में इसका इलाज आसानी से किया जा सकता है। यह एक तरह के कीटाणु से फैलने वाला रोग है जो संक्रमण को फैलाने का काम करता है।"Home | Set as homepage | Add to favorites | Rss / Atom
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