डर्मेटाइटिस एक त्वचा रोग है, जिससे त्वचा की ऊपरी सतह में सूजन व लालिमा हो जाती है। इसके कई अलग-अलग प्रकार हैं, जिनके अंदरूनी कारण भी अलग-अलग हो सकते हैं। इलाज की मदद से डर्मेटाइटिस के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है।
डर्मेटाइटिस का मतलब होता है त्वचा की सूजन और हिन्दी में इसे जिल्द की सूजन के नाम से भी जाना जाता है। यह आमतौर पर त्वचा में लालिमा, सूजन व खुजली के रूप में विकसित होती है। डर्मेटाइटिस एक्जिमा से अलग होता है। सभी एक्जिमा डर्मेटाइटिस के प्रकार होते हैं, लेकिन सभी डर्मेटाइटिस एक्जिमा नहीं होते हैं। डर्मा शब्द का मतलब त्वचा होता है और इसलिए डर्मेटाइटिस त्वचा पर होने वाली सूजन या लाल चकत्ते को संदर्भित करता है। डर्मेटाइटिस से होने वाली सूजन, लालिमा व चकत्ते सामान्य या गंभीर हो सकते हैं, जो पूरी तरह से उसके कारण पर निर्भर करते हैं। डर्मेटाइटिस से शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है और न ही यह संक्रमण की तरह फैलती है। साथ ही डर्मेटाइटिस का त्वचा की स्वच्छता से कोई संबंध नहीं होता है। यदि डर्मेटाइटिस का इलाज समय रहते किया जाए तो इससे लक्षणों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
डर्मेटाइटिस के प्रकार
डर्मेटाइटिस अनेक प्रकार का होता है, जिनमें प्रमुख रूप से निम्न को शामिल किया जा सकता है -
इरिटेंट कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस - यह आमतौर पर उत्तेजक रसायनों से होता है, जैसे डिटर्जेंट, साबुन और परफ्यूम आदि।
एलर्जिक डर्मेटाइटिस - जब आपको किसी पदार्थ से एलर्जी हो और आपकी त्वचा उसके संपर्क में आने पर आपको डर्मेटाइटिस हो जाए तो इस स्थिति को एलर्जिक डर्मेटाइटिस कहा जाता है। कुछ मामलों में यह स्थिति प्रतिरक्षा प्रणाली संबंधी समस्याओं से भी जुड़ी हो सकती है।
एटोपिक डर्मेटाइटिस - यह आमतौर पर छोटे बच्चों में देखी जाती है, जिसमें त्वचा में रूखापन, खुजली व जलन हो सकती है। अधिकतर बच्चों को यह रोग उनके जीवन के पहले वर्ष ही हो जाता है, जबकि अन्य को 1 से 5 साल के बीच यह बीमारी होती है। हालांकि, जीवनशैली में कुछ बदलावों के कारण वयस्कों में भी एटोपिक डर्मेटाइटिस देखा जा सकता है।
सेबोरेहिक डर्मेटाइटिस - यह डैंड्रफ का एक गंभीर प्रकार है, जिसमें खोपड़ी, सीने व पीठ पर पपड़ीदार चकत्ते बनने लगते हैं।
न्युमुलर डर्मेटाइटिस - इसमें विशेष रूप से त्वचा के उन हिस्सों में सफेद व लाल रंग के गोल चकत्ते बनने लगते हैं। कई बार इन चकत्तों पर पपड़ी भी आ जाती है और खुजली होती है।
आईडी इरप्शन - डर्मेटाइटिस का यह प्रकार आमतौर पर सूजन व लालिमा संबंधित किसी अन्य समस्या के कारण विकसित होता है।
पोम्फोलिक्स - इससे अधिकतर मामलों में हाथ व पैर प्रभावित होते हैं, जिन पर लाल रंग के फफोले व छाले बनने लगते हैं।
लाइकेन सिंप्लेक्स कोर्निकस - यह आमतौर पर त्वचा संबंधी किसी दीर्घकालिक समस्याओं के कारण विकसित होता है, जिसमें त्वचा के प्रभावित हिस्से की मोटाई बढऩे लगती है।
डर्मेटाइटिस के लक्षण
डर्मेटाइटिस से होने वाले लक्षण कुछ इस प्रकार हैं -
वहीं गंभीर मामलों में डर्मेटाइटिस के दौरान त्वचा पर फफोले, घाव से द्रव स्राव होना और अन्य कई लक्षण हो सकते हैं।
डर्मेटाइटिस के कारण
डर्मेटाइटिस प्रमुख रूप से निम्न कारणों से होता है -
डर्मेटाइटिस के जोखिम कारक
डर्मेटाइटिस के जोखिम कारक उसके प्रकार के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं जैसे -
डर्मेटाइटिस का निदान
डर्मेटाइटिस एक त्वचा रोग है इसलिए इस स्थिति का निदान डर्मेटोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है। निदान के दौरान डॉक्टर मरीज से पूछते हैं कि उनके लक्षण कैसे और कब विकसित होते हैं। यदि डॉक्टर यह पता लगा लेते हैं कि डर्मेटाइटिस एलर्जी के कारण हुआ है, तो एलर्जन की जांच की जाती है। एलर्जिक पदार्थों का पता लगाने के लिए स्किन पैच टेस्ट भी किए जा सकते हैं। निदान की पुष्टि करने के लिए कई बार रिपीटेड ओपन एप्लीकेशन टेस्ट भी किया जा सकता है।
डर्मेटाइटिस की जटिलताएं
डर्मेटाइटिस से आमतौर पर स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या नहीं होती है, लेकिन इससे निम्न जटिलताएं देखी जा सकती हैं -
डर्मेटाइटिस की रोकथाम
त्वचा को हर समय नमी युक्त रखना डर्मेटाइटिस से बचने का सबसे अच्छा तरीका हो सकता है। इसके अलावा शक्तिशाली डिटर्जेंट और साबुन आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और उनका इस्तेमाल करके हाथों को गुनगुने पानी में धो लेना चाहिए। यदि त्वचा पर कोई चकत्ता हो जाता है, तो उसकी तुरंत डॉक्टर से जांच करवा लेनी चाहिए ऐसे में स्थिति को गंभीर होने से रोका जा सकता है। हालांकि, डर्मेटाइटिस के कुछ प्रकार क्रोनिक होते हैं और उन्हें सिर्फ दवाओं की मदद से ही नियंत्रित किया जा सकता है।
डर्मेटाइटिस में काफी कारगर है होम्योपैथी चिकित्साः डॉ. एके द्विवेदी
डर्मेटाइटिस का इलाज प्रमुख रूप से रोग के प्रकार व कारणों पर निर्भर करता है। वरिष्ठ होम्योपैथी चिकित्सक डॉ. ए.के. द्विवेदी के अनुसार होम्योपैथी चिकित्सा डर्मेटाइटिस पर काफी कारगर है। लोगों में यह भ्रांति है कि होम्योपैथी चिकित्सा कराने पर पहले त्वचा रोग बढ़ता है फिर ठीक होता है जबकि अनुभव यह बताते हैं कि होम्योपैथी इलाज से बिना बढ़े ही सभी प्रकार के त्वचा रोग पूरी तरह से ठीक भी हो जाते हैं और त्वचा का रूखापन (ड्राइनेस) भी पूरी तरह ठीक हो जाता है। होम्योपैथी की 50 मिलीसिमल पोटेंसी की दवाइयां लक्षणों के आधार पर मरीज को देने से शीघ्र परिणाम मिलते हैं।
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