- अप्लास्टिक एनेमिया पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन एक निजी होटल में संपन्न हुआ
इंदौर | आयुष मेडिकल वेलफेयर फाउंडेशन तथा एडवांस्ड होम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च द्वारा शुक्रवार को अप्लास्टिक एनेमिया अवेयरनेस-डे के अवसर पर रक्तजनित बीमारियों जैसे अप्लास्टिक एनेमिया, सिकल सेल एनेमिया एवं थैलेसिमिया पर राष्ट्रीय होम्योपैथिक सेमिनार हुआ। कार्यक्रम के दौरान एक्सपर्ट ने होम्यौपेथी द्वारा इन बीमारियों के इलाज पर अपने अनुभव साझा किए।
इंदौर की एक निजी होटल में हुए कार्यक्रम का शुभारंभ सांसद शंकर ललवानी, जेल अधीक्षक अलका सोनकर, देवी अहिल्या विवि के योग विभाग प्रमुख डॉ. एसएस शर्मा ने किया। इस मौके पर उपस्थित प्रतिभागियों को एमजीएम मेडीकल कॉलेज के डीन डॉ. संजय दीक्षित तथा प्रो. सलिल भार्गव ने सर्टिफिकेट का वितरण किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्ष डॉ. एके द्विवेदी ने की। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. द्विवेदी ने कहा देश मंत अप्लास्टिक एनिमिया बीमारी के मामलों में वृद्धि देखने को मिल रही है। यह एक एसी बीमारी जिसमें व्यक्ति के शरीर में खून का निर्माण बाधित हो जाता है। खून की कमी से कमजोरी, बैचेनी और संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है जो अंततः मरीज के लिए जानलेवा साबित हो जाता है। जो अंततः मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। दरअसल इस बीमारी में बोनमैरो के भीतर रक्त बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है और धीरे-धीरे बोनमैरो में नई रक्त कोशिकाओं का निर्माण बंद हो जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति को किसी भी तरह के बाहरी इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। हमारे देश में मेडिकल सांख्यिकी या यूं कहे कि चिकित्सा संबंधी आंकड़ों का आज से यह बीमारी कैंसर से भी खतरनाक रूप ले चुकी है और ना केवल मरीज बल्कि उसके पूरे परिवार को विभिन्न स्तरों पर प्रभावित कर रही है। यह बीमारी नवजात शिशुओं से लेकर प्रौढ़ व्यक्तियों, युवतियों, किशोरियों या उम्रदराज महिलाओं किसी को भी अपनी गिरफ्त में ले सकती है। इसके शुरुआती लक्षण बेहद सामान्य होते हैं। सलन चक्कर आना, सांस फूलन, कमजोरी महसूस होना, हाथ-पैरों में दर्द, सूजन, बार-बार बुखार आना या महिलाओं को माहवारी के समय अत्याधिक रक्तस्त्राव होने। ये लक्षण कई अन्य बीमारियों से मेल खाते हैं लिहाजा ना केवल मरीज बल्कि कभी-कभी चिकित्सक भी इन लक्षणों को किसी अन्य बीमारी से जोड़कर देख लेते हैं। बुखार आना और उसके बाद रक्त की जांच में हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट्स का कम हो जाना, इसे देखकर सबसे पहले मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों का संशय होता है। स्वभाविक है कि पहले इन बीमारियों की जांच की जाती है। एक के बाद एक जांच के बावजूद जब बीमारी की पहचान नहीं हो पाती तब कही जाकर कोई विशेषज्ञ डॉक्टर अप्लास्टिक एनिमिया का संशय जताता है। नतीजतन जब तक बीमारी की अस पहचान होती है मरीज बहुत कमजोर हो जाता है। किसी व्यक्ति को अप्लास्टिक एनिमिया है यह नहीं। यह पता लगाने के लिए बोनमैरो बायोप्सी की जाती है। बोनमैरी बायोप्सी के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। बोनमैरो एक बहुत महंगी जांच है, इस जांच की सुविधा भी ज्यादातर छोटे शहरों में उपलब्ध ही नहीं है।
बोनमैरो बायोप्सी के बाद यदि अप्लास्टिक एनिमिया की पुष्टि हो जाए तो एलिपैथी इसके दो उपाय सूझाती है
पहला है बोनमैरो ट्रांसप्लांट और दूसरा एटीजी इंजेक्शन। बोनमैरो ट्रांसप्लांट एक बेहद जटिल प्रक्रिया है जिसमें आमतौर 40 लाख रुपए के इर्द-गिर्द खर्च आता है। इतनी बड़ी रकम का इंतजाम कर पाना किसी भी आम भारतीय परिवार के लिए बेहद मुश्किल काम है।
दूसरा विकल्प होता है एटीजी इंजेक्शन। इस इंजेक्शन का खर्च भी 8 लाख से 15 लाख तक आता है और यह भी बीमारी का स्थाई समाधान नहीं कर पाता। आमतौर पर इसका असर 1 से 3 साल तक रहता है। इस लाइललाज बीमारी को ठीक करने में होम्योपैथी असरदार साबित हुई है। होम्योपैथी में इस तरह की दवाएं उपलब्ध है, जिससे रक्त का निर्माण दोबारा शुरू हो सकता है।
डॉ. द्विवेदी जी द्वारा दिए गए 4 दिन के इलाज में ही प्लेटलेट्स व ब्लड बढ़ा हुआ आयाः आजम
सेमिनार में अप्लास्टिक एनेमिया बीमारी से निजात पा चुके बिहार के चंपारण निवासी मसिहा आजम भी मौजूद थे। उन्होंने डॉ. एके द्विवेदी द्वारा किए गए उनके सफल इलाज को लेकर अपना अनुभव बताया। वे बोले कि 20 नवंबर 2018 को जांचें शुरू हुई। और फिर बोनमैरो की जांच में अप्लास्टिक एनिमिया होने की पुष्टि हुई। इसके बाद इलाज शुरू हुआ। इसी बीच एक मित्र ने होम्योपैथिक इलाज लेने को कहा। जिसके बाद इंदौर आकर डॉ. एके द्विवेदी के यहां इलाज शुरू किया। और महज चार दिन के इलाज के बाद जांच करवाई तो प्लेटलेट्स 18 हजार से 27 हजार आया और हिमोग्लबीन भी बढ़ा हुआ आया। तब से होम्योपैथी की दवाएं ले रहा था। जिससे प्लेटलेट्स और हिमोग्लोबिन लगातार बढ़ने लगा। उसके बाद कभी भी प्लेटलेट्स और ब्लड चढ़ाने की जरूरत नहीं हुई।
महिलाओं में खून की कमी का उन्हें ही नहीं था पता
आयुष मेडिकल वेलफेयर फाउंडेशन तथा एडवांस्ड होम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च सोसायटी इंदौर द्वारा स्वस्थ महिलाओं की हिमोग्लोबिन जांच की गई। जिसमें अतयंत चैंकाने वाला परिणाम सामने आया। जिन महिलाओं में खून की कमी उन्हे पता ही नहीं है। 100 महिलाओं में 48 प्रतिशत में रक्त की कमी पाई गई। जिनमें से 26 प्रतिशत महिलाओं के हिमोग्लोबिन 10 ग्राम से नीचे तथा 22 प्रतिशत महिलाओं के हिमोग्लोबिन 11 ग्राम के आसपास रहे। 6 प्रतिशत महिलाओं के हिमोग्लोबिन 8 ग्राम रहे। 8 प्रतिशत महिलाओं के हिमोग्लोबिन 9 ग्राम रहे। 9 महिलाओं के हिमोग्लोबिन 10 ग्राम रहे। 3 प्रतिशत महिलाओं के हिमोग्लोबिन 6 ग्राम के लगभग थी । खून की कमी के मामलो में लापरवाही से गंभीर बीमारी का खतरा बना रहता है। इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत दीपक उपाध्याय व राकेश यादव ने किया। संचालन डॉ. अदिति ने किया।
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