इंदौर। प्रदेश में माताओं और शिशुओं के स्वास्थ्य पर हर साल लगभग 2 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इसके बाद भी प्रदेश की स्थिति देश में सबसे बुरी है। हालात यह हैं कि एक हजार में से 33 बच्चों की जन्म लेने के 28 दिन के अंतर ही मौत हो जाती है। हालांकि यह स्थिति पिछली रिपोर्ट से बेहतर है। इस बार इसमें दो अंकों की कमी दर्ज हुई है। जनगणना निदेशालय द्वारा दो दिन पहले जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) 2021 के अनुसार वर्ष 2019 में प्रदेश में नवजात मृत्यदर (एनएमआर) 33 प्रति हजार थी। जो वर्ष 2018 में 35 थी। यानी एक साल के अंदर दो अंकों की कमी जरूर आई है। लेकिन अभी भी देश में यह सर्वाधिक है। केरल में एनएमआर केवल पांच है। इसी रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश की त्वरीत नवजात मृत्यु दर ( ईएनएमआर) वर्ष 2019 में 25 है जो 2018 में 26 थी। यानी केवल एक अंक की कमी आई है। इसमें जन्म के सात दिन के अंदर होने वाली मौतों को शामिल किया जाता है।
मातृ मृत्यु अनुपात में भी 10 अंकों की आई कमी
इसी रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) में 10 अंकों की कमी आई है। 2017-19 में एमएमआर 163 रहा। वर्ष 2020 में जारी एसआरएस की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 201-18 में यह अनुपात 173 था। प्रति लाख प्रसव पर जितनी प्रसूताओं की मौत होती है उसे एमएमआर में शामिल किया जाता है। इस सुधार के बाद भी मप्र देश में सबसे पिछड़े तीन राज्यों में शामिल है। क्योंकि असम में एमएमआर 205 व यूपी में 167 है और उसके बाद मप्र है।
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