प्रदेश मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाने व इलाज के लिए डॉक्टरों की कमी, 3 साल में 150 से ज्यादा ने छोड़ी नौकरी

By
Font size: Decrease font Enlarge font

इंदौर। मध्यप्रदेश में डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए सरकार नए-नए मेडिकल कॉलेज खोल रही है लेकिन हाल यह कि इन कॉलेजों में पढ़ाने और इलाज के लिए डॉक्टर ही नहीं है। प्रदेश के 13 शासकीय मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षकों के 2800 में से 1200 के करीब पद खाली है। हालांकि दो साल में शासकीय मेडिकल कॉलेजों में 10 बार से ज्यादा साक्षात्कार हो चुके हैं फिर भी यह कमी बरकरार है। सबसे ज्यादा कमी पांच साल पहले खोले गए नए मेडिकल कॉलेजों में हैं। पहले से काम कर रहे डॉक्टर भी नौकरी छोड़कर जा रहे हैं। पिछले तीन साल में 150 से ज्यादा चिकित्सकों ने नौकरी छोड़ी है। जानकारी अनुसार भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) की बात करे तो यहां 26, इंदौर मेडिकल कॉलेज से 20, विदिशा से 25, सागर से 15, रतलाम से 9, शहडोल से 4, दतिया से 15, खंडवा से 6, छिंदवाड़ा से 13, रीवा से 9 और जबलपुर के 4 डॉक्टरों ने नौकरी छोड़ी है। अन्य कॉलेजों का आंकडा 10 से ऊपर है। इसमें सबसे ज्यादा खराब हाल विदिशा के हैं। यहां प्राध्यापक के 23 में से 10, सह प्राध्यापकों के 38 में से 21, सहायक प्राध्यापकों के 65 में से 27 पद खाली हैं। रतलाम में चिकित्सा शिक्षकों के 55 पद खाली हैं। इनमें प्राध्यापकों के 9 पद शामिल हैं। खंडवा में प्राध्यापक के 7, सह प्राध्यापक के 13 और सहायक प्राध्यापक के 21 पद रिक्त हैं। शिवपुरी में तीनों श्रेणी के 155 पदों में से 87 रिक्त हैं। वहीं भोपाल के जीएमसी में प्राध्यापकों के 49 पद में से 13, सह प्राध्यापकों के 89 में से 10 और सहायक प्राध्यापकों के 137 में से 22 पद खाली हैं। चिंता की बात यह है कि जो चिकित्सक छोड़कर जा रहे हैं उनमें ज्यादातर चिकित्सकीय विभागों के हैं।

डॉक्टर्स के नौकरी छोड़कर जाने से हो रहा है नुकासन

  • एमबीबीएस, एमडी-एमएस की सीटें नहीं बढ़ पा रही है। उल्टा मौजूदा सीटों की मान्यता ही कई बार एनएमसी द्वारा रोक दी जाती है।
  • नए सुपर स्पेशियलिटी कोर्स नहीं शुरू हो पा रहे हैं। छह पुराने मेडिकल कॉलेजों में हर जगह दो या तीन विषय में ही यह कोर्स चल रहे हैं।
  • अस्पतालों में करोड़ों की मशीनें रखी हैं लेकिन उसे चलाने वाला कोई नहीं है।
  • ओपीडी, आपरेशन, वार्ड हर जगह मरीजों के इलाज में देरी होती है।
  • मई और जून में आधे चिकित्सक ग्रीष्म अवकाश में रहते हैं। इस कारण मरीजों को इलाज मिलने में और मुश्किल होती है।
  • 10 मेडिकल कॉलेज और स्वीकृत हैं। इनके भवन बनने भी शुरू हो गए हैं। पहले से डॉक्टरों की इतनी कमी है तो नए कॉलेजों को मान्यता कैसे मिलेगी यह भी एक सवाल है।