इंदौर। गुलियन बेरी सिंड्रोम (जीबीएस) के रोगियों के लिए एक अच्छी खबर है। खबर यह है कि जीबीएस के रोगियों का उपचार महंगे इम्युनोग्लोबुलिन के इंजेक्शन से नहीं बल्कि प्लाज्मा थैरेपी से हो सकेगा। इजेक्शन के जरिए होने वाले इलाज पर जहां डेढ़ लाख रुपए तक खर्च होते थे वहीं प्लाजमा थैरेपी से जीबीएस का इलाज 30 से 40 हजार रुपए में हो जाएगा। बताया जा रहा है कि इंदौर स्थित एमवाय अस्पताल के डॉक्टर्स ने इस पर काम शुरू कर दिया है। पहले चरण में अस्पताल में भर्ती आधा दर्जन रोगियों को प्लाज्मा थैरेपी दी गई थी। ये सभी रोगी जीबीएस को मात दे चुके हैं। डॉक्टर्स के मबताबिक इंजेक्शनों के मुकाबले प्लाज्मा थेरेपी के जरिए इलाज ज्यादा कारगर और सस्ता है।
जीबीएस में दूसरी बीमारियों से लड़ने के लिए शरीर में पहले से मौजूद एंटीबाडी स्वस्थ तंत्रिकाओं पर हमला कर उन्हें नष्ट करने लगती है। ये एंडीबाडी प्लाज्मा में रहकर उसे नियंत्रित करता है जबकि प्लाज्मा थेरेपी में पूरे प्लाज्मा को ही बदल दिया जाता है जिसमें ये एंटीबाडी हैं।
जीबीएस के रोगी को इम्युनोग्लोबुलिन के 15 से 18 तक इंजेक्शन लगाना पड़ते हैं
जीबीएस के रोगी को इम्युनोग्लोबुलिन के 15 से 18 तक इंजेक्शन लगाना पड़ते हैं और एक इंजेक्शन करीब 6 से 8 हजार रुपए का आता है। यानी सरकारी अस्पताल में इलाज पर एक से डेढ़ लाख रुपए खर्च हो जाते हैं। वहीं प्लाज्मा थेरेपी के जरिए इलाज पर 3-4 किट लगती है और एक किट की कीमत 7 से 8 हजार रुपए हैं। इस तरह प्लाज्मा थेरेपी के जरिपए उपाचर पर 30-40 हजार रुपए का खर्च आता है।
जीबीएस के एक रोगी को इलाज के लिए लगता है 18 से 20 यूनिट प्लाज्मा
एमजीएम मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. अशोक यादव द्वारा एक अखबार को बताए मुताबिक सामान्यतः जीबीएस के एक रोगी के उपचार में 18 से 20 यूनिट प्लाज्मा की जरूरत होती है। एमवायएच की ब्लड बैंक में पर्याप्त मात्रा में रक्त उपलब्ध रहता है। हॉस्पिटल के पास अपनी खुद की प्लाज्मा फेरेसिस मशीनें हैं। पर्याप्त मात्रा में प्लाज्मा उपलब्ध होने से जीबीएस के रोगियों को इसकी कमी नहीं होती है। वहीं प्लाज्मा को माइनस 40 डिग्री पर एक साल, आरबीसी को 28 दिन और प्लेटलेट्स को 5 दिन सुरक्षित रखा जा सकता है। प्लाज्मा सबसे ज्यादा समय तक सुरक्षित रहता है इसलिए इसकी उपलब्धता सहत होती है।
आयुष्मान योजना में नहीं शामिल है जीबीएस
जीबीएस को राज्य शासन ने आयुष्मान योजना में शामिल नहीं किया है। यह वजह है कि सरकारी अस्पताल में भर्ती होने के बावजूद रोगी के स्वजन को इंजेक्शन का इंतजाम खुद ही करना होता है। प्लाज्मा थेरेपी के जरिए उपचार होने पर उन्हें आर्थिक राहत मिलेगी।
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