इंदौर। जब आप छोटी-छोटी से शरीर की तकलीफ से परेशान होते हैं तो ऐसे में आप डॉक्टर को याद करते हैं। क्योंकि आपको पता होता है कि जब आपके आंसू होते हैं तो डॉक्टर कंधा होते हैं, जब दर्द होता है तो वे दवा होते हैं और कभी-कभी जीवन देने वाली उम्मीद होते हैं। दिन-रात मरीजों की सेवा ही उनका कर्तव्य होता है। इसलिए मनुष्य के जीवन में एक डॉक्टर की भूमिका क्या है यह बताने की जरूरत नहीं है। हमारी भारतीय संस्कृति में डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है और उसी भगवान को महत्व व उनके कामों के अमूल्य योगदान के प्रति सम्मान जाहिर करने के लिए एक जुलाई को डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है। जिसे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन मनाता है। दुनिया में पहले से ही डॉक्टर्स को जीवनदाता की संज्ञा दी गई है और कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौरान भी डॉक्टर्स ने दिन-रात मरीजों की सेवा कर अपना डॉक्टर्स होना का कर्तव्य बखूबी साबित किया है। उनके इस बलिदान और समर्पण को हम सलाम करते हैं।
क्यों मनाते हैं डॉक्टर्स डे
इस दिन प्रख्यात चिकित्सक और बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. बीसी रॉय की जयंती और पुण्यतिथि भी है। नेशनल डॉक्टर्स डे पहली बार साल 1991 में डॉ. रॉय के काम का सम्मान करने के उद्देश्य से मनाया गया था। जिन्होंने समाज की सेवा के लिए अथक प्रयास किए थे। डॉ. रॉय को 4 फरवरी 1961 को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। डॉ. रॉय को जादवपुर टीबी अस्पताल, विक्टोरिया इंस्टीट्यूशन (कॉलेज) और चितरंजन कैंसर अस्पताल सहित अन्य जैसे चिकित्सा संस्थानों की स्थापना के लिए जाना जाता है। वहीं हर वर्ष डॉक्टर्स डे को सेलिब्रेट करने के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है। इस साल नेशनल डॉक्टर्स डे की थीम है फैमेली डॉक्टर्स आन दी फ्रंट लाइन।
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