इंदौर। मध्यप्रदेश सरकार ने एमबीबीएस और एमडी-एमएस के बाद एक-एक साल के लिए अस्पतालों में अनिवार्य सेवा करने की शर्त सरकारी मेडिकल कॉलेज से निकले डॉक्टरों पर लगाई थई। वर्ष 2002 से लेकर 2016 तक ऐसे 10 हजार 407 विद्यार्थियों का प्रवेश बांड की शर्तों के अधीन हुआ था। इनमें से करीब 3 हजार डॉक्टरों ने न तो एक साल पहले मप्र मेडिकल काउंसिल ने बांड की शर्तों का उल्लंघन करने वाले डॉक्टरों का पंजीयन निरस्त करने का नोटिस दिया तो लगभग तीन हजार डॉ.क्टरों ने बांड की राशि के रूप में 81 करोड़ रुपए जमा करा दिए लेकिन 800 डॉक्टर अभी भी ऐसे हैं जिन्होंने न तो शासन द्वारा तय स्थान पर सेवी दी और न ही बांड की राशि जमा की है। हालांकि कुछ डॉक्टरों की याचिका पर हाईकोर्ट मार्च में पंजीयन निरस्त करने पर स्थगन दे दिया। इसेक बाद से सिर्फ 200 डॉक्टों ने ही बांड की राशि जमा की है, बाकी चुप बैठ गए हैं। गौरतलब है कि बांड की राशि पहले अलग-अलग समय में एमबीबीएस और एमडी-एमएस के लिए हर वर्ग के अनुसार अलग-अलग थी। 2016 में अनारक्षित श्रेणी के लिए एमडी-एमएस और एबीबीएस की बांड राशि क्रमशः 10 लाख एवं 8 लाख रुपए थीं। 2017 से यह नियम बना दिया गया है कि प्रवेश लेने वाले सभी विद्यार्थियों को डॉक्टर बनने के बाद एक साल की अनिवार्य सेवा देना ही है। बांड राशि जमा कर बचने का विकल्प खत्म कर दिया गया है। अब निजी और सरकारी सभी कॉलेजों से निकले डॉक्टरों को अनिवार्य सेवा देनी होती है।
मप्र मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ. आरके निगम के अनुसार अभी तक करीब 3000 डॉक्टरों ने बांड की राशि जमा करा दी है। यह 81 करोड़ रुपए हैं। लेकिन करीब 900 डॉक्टर अभी भी बचे हुए हैं।
Home | Set as homepage | Add to favorites | Rss / Atom
Powered by Scorpio CMS
Best Viewed on any Device from Smartphones to Desktop.
Comments (0 posted)
Post your comment