रक्ताल्पता का मतलब होता है रक्त की कमी, जिसका वास्तविक अर्थ है शरीर के प्रत्येक कोशिकाओं और ऊत्तक तक रक्त की कमी, जिसके कारण रक्ताल्पता से पीड़ित व्यक्ति (मरीज) के शरीर में शक्ति की कमी होती चली जाती है। उससे दैनिक कार्य नहीं हो पाते हैं बोलने में तकलीफ होती है। श्वांस लेने में तकलीफ होती है। सीढ़िया नहीं चढ़ पाते हैं, चलने में हांफने लगते हैं। लोग यदि ध्यान न दे तो यह लक्ष्ण अस्थमा जैसे प्रतीत होते हैं।
वैज्ञानिक सलाहाकर बोर्ड, केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सदस्य एवं सेंटर के संचालक व सुप्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार एक बार एक मरीज अपनी पत्नी को लेकर मेरे पास आए। उन्होंने बताया कि पत्नी को अस्थमा हो गया है और काफी समय से इलाज करा रहे हैं लेकिन श्वांस की परेशानी में कोई आराम नहीं मिला है। मैंने जब बारीकी से परीक्षण किया तो मुझे पैन सिस्टोलिक मरमर मिला जो एनिमिया में मिलता है। मैंने उन्हें समझाया की कोशिश की कि आपको रक्ताल्पता है अस्थमा नहीं। तो वे पहले तो मेरी बात मानने को तैयार नहीं हुए। फिर ऐसा निर्यण हुआ कि क्यों न हिमोग्लोबिन जांच कराकर देखा जाए और जब हिमोग्लोबिन जांच कराया तो उनका 7.4 ग्राम हिमोग्लोबिन आया।
इसके बाद 3-4 माह तक लगातार फासफोरस एवं फैरम मेट 3x दिया गया तथा खाने में चुकंदर, भूना चना, गुड़ और दूध का सेवन ज्यादा करने को बोला। फिर वे बिल्कुल ठीक हो गई और श्वांस की समस्या और कमजोरी भी ठीक हो गई।
कई बार चिकित्सक की थोड़ी सी लापरवाही भी मरीज को लंबे समय की पीड़ा दे सकती है। इसलिए केवल लक्षणों के आधार पर दवा देना पूरी तरह से ठीक नहीं है। हमें मरीजों के कुछ पैथोलॉजिकल परीक्षण एक्सरे इत्यादि समय-समय पर कराते रहना चाहिए।
फैरम फआसफोरस एवं फैरम मेट कारगर साबित होती है
डॉ. द्विवेदी बताते हैं हमारे पास कई ऐसे कैंसर के मरीज आते और जिन्हें कीमोथैरापी व रेडियोथैरापी के बाद रक्ताल्पता हो सकती है। इसमें भी फैरम फासफोरस एवं फैरम मेट अत्यंत कारगर साबित होती है। ब्लीडिंग पाईल्स अथवा महावारी में अत्याधिक रक्त स्त्राव भी रक्ताल्पता का प्रमुख कारण हो जो कि शर्म के कारण लोग तुरंत परिवार वालों को या डॉक्टर को नहीं बता पाते हैं और लंबे समय तक रक्तस्त्राव होने के कारण कमजोरी व रक्ताल्पता होना निश्चित है। ऐसे मरीजों में हेमामिलिस, लेकेसिस, फैरम फास, एसिड नाईट्रिक, आर्सेनिक, सैबाइना इत्यादि दवाई कारगर है। होम्योपैथिक दवाइयों से हम रक्तालप्ता के मरीजों को पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं बर्शें हम रक्ताल्पता के कारण को समझकर यदि उसके कारण को भी जब दूर कर सकें।
बच्चों में आयरन की कमी से एनीमिया
बच्चों के लिए आयरन बहुत अधिक जरूरी होता है क्योंकि शरीर में आयरन की कमी से उन्हें एनीमिया नामक रोग हो सकता है। डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार बच्चों को अपने शरीर के लिए जरूरी आयरन भोजन से मिलता है।
कुछ महत्वपूर्ण बातें जिनका रखना चाहिए ध्यान
जो आयरन एनिमल सोर्स (चिकन, फिश) आदि से शरीर में आता है उसकी उपलब्धता शरीर में अधिक होती है। कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे होते हैं जो कि भोजन में मौजूद आयरन की शरीर में उपलब्धता बढ़ाते हैं। जैसे फिश, चिकन, संतरा, स्ट्राबेरी, अंगूर, सब्जियों में ब्रोकली, टमाटर, आलू, मिर्च आदि। अतः भोजन के साथ में इन पदार्थों के सेवन से भोजन में मौजूद आयरन बच्चों के शरीर को अधिक उपलब्ध होता है। बच्चों में आयरन की कमी को दूर करने के लिए उन्हें विटामिन सी से भरपूर खाना जैसे टमाटर, ब्रोकली, संतरा, स्ट्राबेरी आदि भी अधिक मात्रा में देना चाहिए।
एक साल के बाद बच्चे के दूध की मात्रा आधा लीटर प्रतिदिन से अधिक न हो। खाना खाने के समय के आसपास बच्चों को चाय या कॉफी नहीं देना चाहिए। चाय या कॉफी में मौजूद टेनिन आयरन के पाचन को कम करता है। शुरुआत के दो साल बच्चों को अधिक आयरनयुक्त आहार दें। मार्कट में उपलब्ध आयरन सर्टिफाइड तैयार खाद्य पदार्थ भी दे सकते हैं।
नोटः- इस लेख में बताई गईं दवाओं के प्रयोग से पहले आप अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें। ताकि आपको आपनी बीमारी अथवा परेशानी का सही इलाज मिले और आपको राहत मिल सकें।
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