भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपैथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपैथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं होम्योपैथी से तो सभी परिचित हैं, लेकिन सवाल यह है कि हम होम्योपैथी को जानते कितना हैं? कहीं हमारी जानकारी सुनी-सुनाई बातों पर तो आधारित नहीं? एक मरीज के रूप में होम्योपैथी की खासियत और सीमाओं के बारे में जानना जरूरी है। होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वारा जर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपैथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपैथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं। भारत सरकार भी अब इस चिकित्सा पद्धति पर काफी ध्यान दे रही है। इसे भी आयुष मंत्रालय के अंतर्गत जगह दी गई है।
क्या है होम्योपैथी, क्यों है यह खास?
होम्योपैथिक चिकित्सक व केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसन्धान परिषद्, आयुष मंत्रालय (भारत सरकार) में वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. ए.के. द्विवेदी ने बताया कि एलोपैथी और आयुर्वेद की तरह होम्योपैथी भी एक चिकित्सा पद्धति है। इसमें एलोपैथी की तरह दवाओं का एक्सपेरिमेंट जानवरों पर नहीं होता। इसे सीधे इंसानों पर ही टेस्ट किया जाता है। होम्योपैथिक दवाइयां दूसरी पद्धति की तुलना में काफी सुरक्षित मानी जाती हैं।
क्या इसके भी साइड इफेक्ट्स हैं?
होम्योपैथी के साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी को बुखार की दवाई दी गई और उस व्यक्ति को लूज मोशन, उल्टी या स्किन पर एलर्जी हो जाए। दरअसल, ये परेशानी साइड इफेक्ट की वजह से नहीं है। ये होम्योपैथी के इलाज का हिस्सा है, लेकिन लोग इसे साइड इफेक्ट समझ लेते हैं। इस प्रक्रिया को 'हीलिंग काइसिस' कहते हैं जिसके द्वारा शरीर के जहरीले तत्व बाहर निकलते हैं।
क्या होम्योपैथी में इलाज काफी धीमा होता है?
80 फीसदी मामलों में लोग होम्योपैथ के पास तब पहुंचते हैं जब एलोपैथी या आयुर्वेद से इलाज कराकर थक चुके होते हैं। कई बार तो 15 से 20 साल से इलाज कराने के बाद पेशंट थक-हारकर होम्योपैथ के पास पहुंचते हैं। ऐसे मामलों में इलाज में वक्त लग सकता है।
कैसे होता है इलाज?
इसमें मरीज की हिस्ट्री काफी मायने रखती है। अगर किसी की बीमारी पुरानी है तो डॉक्टर उससे पूरी हिस्ट्री पूछता है। मरीज क्या सोचता है, वह किस तरह के सपने देखता है जैसे सवाल भी पूछे जाते हैं। ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानने के बाद ही मरीज का इलाज शुरू होता है।
किस तरह की बीमारियों में सबसे अच्छी?
इलाज लगभग सभी बीमारियों का है। पुरानी और असाध्य बीमारियों के लिए सबसे अच्छा इलाज माना जाता है इसे। असाध्य बीमारियां वे होती हैं जो एलोपैथ से इलाज के बाद भी बार-बार आ जाती हैं, लेकिन माना जाता है कि होम्योपैथी उन्हें जड़ से खत्म कर ली है, मसलन ऐलर्जी (स्किन), एग्जिमा, अस्थमा, कोलाइटिस, माइग्रेन आदि।
किन बीमारियों में कम कारगर?
होम्योपैथी कैंसर में आराम दे सकती है। हां, पूरी तरह ठीक करना मुश्किल है। शुगर, बीपी, थाइरॉइड आदि के नए मामलों में यह ज्यादा कारगर है। अगर किसी मर्ज का पुराना केस है तो पूरी तरह ठीक करने में देरी होती है।
क्या है होम्योपैथी की सीमा?
इसके इलाज के लिए कोई डॉक्टर सफेद मीठी गोलियां देता है तो कोई लिक्विड। ऐसा क्यों?
होम्योपैथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है।
क्या होम्योपैथी में दवा सुंघाकर भी इलाज किया जाता है?
हां, कुछ दवाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें मरीज को सिर्फ सूंघने के लिए कहा जाता है। मसलन, साइनुसाइटिस और नाक में गांठ की समस्या होने पर डॉक्टर ऐसे ही इलाज करते हैं।
अगर किसी को 5 बीमारियां हैं तो क्या उसे 5 तरह की दवा दी जाएगी?
ऐसा बिलकुल भी नहीं है। एलोपैथ की तरह इसमें 5 अलग-अलग बीमारियों के लिए 5 तरह की दवा नहीं दी जाती है। होम्योपैथी डॉक्टर 5 बीमारियों के लिए एक ही दवा देता है।
लहसुन-प्याज न खाएं?
10-15 साल पहले होम्योपैथी दवाई लिखने के बाद डॉक्टर यह ताकीद जरूर करते थे कि लहसुन, प्याज जैसी चीजें नहीं खाना है, क्योंकि माना जाता था कि इनकी गंध से दवाई का असर कम हो जाएगा। लेकिन नए शोधों ने इस तरह की सोच को बदल दिया है। अब डॉक्टर इन चीजों को खाने की मनाही नहीं करते। अब इंसानी शरीर प्याज, लहसुन आदि के लिए नया नहीं रहा।
तो इस चिकित्सा पद्धति से इलाज कराते हुए कोई परहेज नहीं है?
होम्योपैथी की दवा खाने के दौरान जिस एक चीज की सख्त मनाही होती है वह है कॉफी। दरअसल, कॉफी में कैफीन होती है। कैफीन होम्योपैथी दवा के असर को काफी कम कर देती है। कुछ डॉक्टर डीयो और परफ्यूम भी लगाने से मना करते हैं। माना जाता है कि इनकी खुशबू से भी दवा का असर कम हो जाता है।
क्या प्लास्टिक या शीशे की डिब्बी से फर्क पड़ता है?
साइज से कोई फर्क नहीं पड़ता। हां, होम्योपैथी की दवाएं कांच की बोतल में देना ही बेहतर है। अगर उस पर कॉर्क लगा हो तो और भी अच्छा। दरअसल, हो्योपैथी की दवाओं में कुछ मात्रा में अल्कोहल का उपयोग किया जाता है। अल्कोहल प्लास्टिक से रिऐक्शन कर सकता है। वैसे, आजकल प्लास्टिक बॉटल की क्वॉलिटी भी अच्छी होती है। इसलिए प्लास्टिक का इस्तेमाल भी कई डॉक्टर दवाई देने के लिए करते हैं। दरअसल, कांच की बॉटल को साथ में ले जाना मुश्किल होता है। इसके टूटने का खतरा बना रहता है।
क्या एलोपथी और होम्योपैथी की दवाई एक साथ ले सकते हैं?
हां, जरूर ले सकते हैं, लेकिन यह समझना मुश्किल हो जाता है कि बीमारी ठीक किसकी वजह से हुई है।
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